October 14, 2025 4:29 am

एफआईआर का बदलता स्वरूप: संदेहास्पद मौत हो या हत्या-हादसा, चक्काजाम के बाद ही केस

सागर। जिले में पिछले कुछ समय से प्राथमिकी दर्ज कराने का तौर तरीका बदल सा गया है। स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर तो छोड़िए जब तक मृतक के परिजन शव रखकर सड़क जाम नहीं करते, हो हल्ला ना हो, अफसर, नेताओ के फोन न घन-घनाएं तब तक पुलिस धाराओं में केस दर्ज नहीं करती। पुलिस को कानून और धाराएं याद दिलाने के लिए इतनी औपचारिकता तो करना ही पड़ रही है। खासकर संदेहास्पद मौत हो, हत्या या कोई हादसा।  चक्काजाम के बाद ही केस दर्ज हो पा रहे हैं। ऐसे मामलों में पुलिस का तर्क रहता है कि बिना बयान, जांच और सबूतों के कैसे किसी के खिलाफ केस दर्ज कर लें? बात  सही भी है। पुलिस के ये तर्क तब कुतर्क लगने लगते हैं जब मामला किसी बड़े नेता से जुड़ा या उसके किसी कट्टर विरोधी का या कोई और हाई प्रोफाइल केस हो। ऐसे मामलों में पुलिस जिस तत्परता से जांच करती है वह गति किसी गरीब, मजदूर की मौत को लेकर दिखाई नहीं देती।

अब बात करते हैं कनेरादेव के निर्माणाधीन पुल के सरियाें का जाल गिरने से मजदूर की माैत के मामले की। इस मामले में माेतीनगर पुलिस ने ठेकेदार राजेन्द्र सिह लोधी एवं सुपरवाइजर भूपेंद्र सिंह ठाकुर के खिलाफ काफी सोच समझकर केस दर्ज किया है। पुल का जाला गिरने से 47 वर्षीय राकेश पिता घनश्याम अहिरवार निवासी गंभीरिया हाट थाना राहतगढ़ की माैत हाे गई थी। हादसे में तीन मजदूर घायल हाे गए थे। मजदूराें ने पुलिस काे दिए बयानाें में कहा है कि ठेकेदार राजेन्द्र सिंह लोधी एवं सुपरवाइजर भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने हम लोगों को लोहे का ढांचा बांधने के लिए रस्सी व चेन नहीं दी थी। हम लोग लोहे का ढांचा पुल की दीवार से सटाकर बना रहे थे। हम लोगों ने सुपरवाइजर से कहा था कि जाल बहुत भारी है। सुपरवाइजर ने कहा था कि ठेकेदार ने बोला है कि इतने ही मजदूरों से जाल खड़ा कराओ। उसी दिन मजदूरों के बयान लेकर एफआईआर दर्ज की जा सकती थी। यह ऐसा पहला मामला नहीं है जिले में हर दूसरे केस में ऐसा ही हो रहा है। पुलिस अब सीधे एफआईआर करने से बच रही है। इंतजार करती है कि कुछ माहौल बने।

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