3 किवदंतियां प्रचलित- यहां गिरी थी माता की रान, रामजी ने काटा वनवास, रावण ने की थी तपस्या
दीपेश प्रजापति, सागर। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध सिद्धपीठ रानगिर में चैत्र नवरात्र मेला लगा है। मां हरसिद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली है। दिन में तीन प्रहर में मां तीन रूप में दर्शन देती हैं। सूर्य की प्रथम किरणों के समय मां बाल रूप में दर्शन देती हैं तो दोपहर बाद युवा रूप एवं शाम का वृद्ध रूप दर्शन देती हैं। मध्यप्रदेश और प्रदेश के बाहर तक के श्रद्धालु रानगिर आते हैं और मां के दरबार में मनौती मांगते है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मां हरसिद्धि से जाे भी मनाेकामना की जाती है वह पूरी हाेती है। पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने योगबल से अपना शरीर त्याग दिया था। भगवान शंकर ने सती के शव को लेकर तांडव किया। जहां-जहां भी अंग गिरे वे सिद्ध क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं। सती की रान एवं दांत के अंश यहां गिरे तो यह स्थान सिद्ध क्षेत्र रानगिर एवं गौरी दांत नाम से विख्यात हुअा। यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र की पहाड़ी कंदराओं में रावण ने घोर तपस्या की थी। इस कारण इसका नाम रावणगिरी हुआ और कालांतर में परिवर्तित हाेकर सूक्ष्म नाम रानगिर पड़ा। वैसे इस सिद्ध क्षेत्र के संबंध में कई किवदंतियां प्रचलन में हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान राम के वनवास काल में चरण कमल पड़े थे। इसी से नाम रामगिर पड़ा अाैर यह परिवर्तित हाेकर रानगिर कहलाने लगा।
परगना मराठाें की राजधानी थी रानगिर
1732 में सागर प्रदेश का रानगिर परगना मराठों की राजधानी था। जिसके शासक पंडित गोविंद राव थे। वर्तमान मंदिर पंडित गोविंदराव का निवास परकोटा था। 1760 मे पंडित गोविंद राव की मृत्यु के बाद यह स्थल खण्डहर में बदल गया। इसी खण्डहर के बीच एक चबूतरा था कुछ सालों बाद इसी चबूतरे पर मां हरसिद्धि देवी जी की मूर्ति स्थापित की गई। बाद मे धीरे धीरे श्रद्धालुओं ने इस खण्डहर को पुनजीर्वित कर विशाल मंदिर का रूप दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पहले हुआ था।
आधुनिक झूला पुल का हो रहा निर्माण
यहां पर पूर्व मंत्री व रहली विधायक गोपाल भार्गव द्वारा आधुनिक झूला पुल का निर्माण कराया जा रहा है। यह पुल दो विधानसभा रहली और सुरखी को जोड़ेगा। जिससे यहां अावागमन बढ़ेगा। यह बुंदेलखंड का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बन गया है।